- “प्रभावों से इन्कार ही स्वभाव का स्वीकार है।”
- “हमारा स्वभाव है, मुक्त रहना, स्वतंत्र रहना।”
- “जैसे सत्य का स्वभाव है फैलना, वैसे माया का स्वभाव भी फैलना है। वो भी फैलती है, और खूब फैलती है।”
- “स्वभाव के विरूद्ध ये भावना होती है, ये वृत्ति होती है, कि स्वभाव के विरुद्ध रहा जासकता है।”
- “न चिंता न चाहत, स्वभाव तुम्हारा है बादशाहत|”
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उपरोक्त सूक्तियाँ आचार्य प्रशांत के लेखों और वार्ताओं से उद्धृत हैं