कुरबाणु कीता तिसै विटहु जिनि मोहु मीठा लाइआ|
– गुरु नानक
वक्ता: मैं उस पर कुरबान जाता हूँ जिसने मोह को मीठा बना दिया है| मोह हमेशा कड़वा होता है| मोह का अर्थ है- अपने से बाहर किसी से जुड़ना, वो हमेशा ही कड़वा होता है, मीठा मोह असंभव है| तो जब मीठे मोह की बात की जा रही है तो अर्थ है कि जिसने मोह का कड़वा होना, असंभव कर दिया| यहाँ ‘जिससे’ जुड़ना किसी व्यक्ति से जुड़ना नहीं है लेकिन इसको दूसरे अर्थ में पढ़ना बहुत आसान है|
इसका जो अंगेज़ी अनुवाद है वो है, ‘आई ऍम सक्रिफाइस्ड सॅक्रिफाइस्ड टू द वन, हू हैस मेड इमोशनल अटैचमेंट्स स्वीट बड़ा आसान है इसको यह पढ़ लेना कि जो भक्त लोग होते हैं वो मीठे, भावुक मोह (स्वीट, इमोशनल अटैचमेंट्स) में रहते हैं| बहुत आसान है इसका ये अर्थ कर लेना, और ये अर्थ का अनर्थ है |
देखिये, संत बहुत-बहुत गहरे ध्यान से बोलता है| उसकी बातों का यूँ ही चलते-फिरते अर्थ मत कर लिया कीजिये| अद्वैत के फेसबुक पेज पर एक पोस्टर है जिसमें लिखा है, ‘कृष्ण को समझने के लिए, कृष्ण जैसा ही होना पड़ेगा’| कृष्ण को जब पढ़ रहे हों, गीता को जब पढ़ रहे हों, तो थोड़ा ठहर कर, पूरे ध्यान में आइये, और ये सवाल पूछिए अपने आप से, ‘क्या मैं कृष्णत्व के आसपास हूँ?’ अगर ज़रा भी आसपास नहीं हैं, तो आप बड़ा नुकसान कर रहे हैं अपना, गीता पढ़ कर|
जो अनुवाद कर रहा है, ये पता नहीं किस क्षण में उसने ये अनुवाद किया है| कौन-सी उसकी मनोदशा है? लेकिन ये पक्का है कि नानक के आसपास भी नहीं था वो जब वो ये कह रहा था| दूर-दूर तक उसके नानक नहीं थे, जब उसने ये अनुवाद किया है | ‘आई ऍम सैक्रिफ़ाइसेड टू द वन, हू हैस मेड इमोशनल अटैचमेंट्स स्वीट| नानक क्या कह रहे हैं और तुम उसका क्या अर्थ कर रहे हो? तुम हो कहाँ? तुम हो कहाँ? कहने वाले होंगे नानक, अर्थ करने वाला कौन है? तुम| और क्या कर दिया तुमने?
तुमने उसको दुनिया भर के गृहस्थों का और ममता भरी नारियों का खिलौना बना दिया| वो तो पूजेंगी इस पंक्ति को और कहेंगी, ‘बिल्कुल ठीक, नानक ने वही कहा है जो मुझे हमेशा से लगता था| मैं तो जानती ही थी इस बात को कि ‘ईश्वर मीठा, भावुक मोह है और नानक ने देखो इसकी पुष्टि कर दी|
बात सूक्ष्म है, ‘जिनि मोहु मीठा लाइआ’, वो कह रहे हैं, ‘तुमने तो जितने मोह जाने हैं, वो कड़वे ही हैं| अब एक मोह ऐसा भी जानो जो मीठा हो सकता है, जो असंभव मोह है, ज़रा उसमें उतरो’| ‘असंभव’ मतलब जो द्वैत की दुनिया में संभव ही नहीं है| तुम्हारे सारे मोह द्वैत की दुनिया के हैं, वस्तुओं से मोह करते हो, व्यक्तियों से मोह करते हो| मोह माने जुड़ना, तुम वस्तुओं से, व्यक्तियों से जा कर जुड़ते हो, ज़रा अद्वैत से जुड़ो, ज़रा उससे जुड़ो जहाँ न वस्तु है, न व्यक्ति है, न विचार है| सिर्फ़ तब मोह कड़वा नहीं होगा|
‘मीठा’ का अर्थ यह नहीं है कि ‘मीठा’, ‘मीठा’ का अर्थ है ‘नहीं कड़वा’| बात समझ रहे हो? अगर तुमने ‘मीठा’ को मीठा बनाया तो वो कड़वे जैसा ही हो जायेगा, क्योंकि मीठा और कड़वा एक हैं, दोनों द्वैत की दुनिया के हैं| यहाँ पर ‘मीठा’ शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं| अगर द्वैत की भाषा में लोगे तो ‘मीठे’ का अर्थ होगा- वो मीठा जो कड़वे का द्वैत युग्म है, जो हमेशा कड़वे के साथ रहता है| और यहाँ पर जब कहा जा रहा है ‘मीठा’, तो उसका अर्थ है- वो मीठा, जो कड़वा नहीं है, और कड़वा इस तरह नहीं है कि न कड़वा, न मीठा| बात समझ रहे हो?
(श्रोताओं को एक कलम दिखाते हुए) ये कलम है, इसके दो सिरे हैं, ये जैसे द्वैत के दो सिरे हैं| इसके एक सिरे को मैं ऐसे भी ख़ारिज कर सकता हूँ कि ये बड़ा बेकार सिरा है| तो मैंने क्या किया? मैंने विपरीत सिरा पकड़ लिया| ये काम द्वैत की दुनिया में होता है, ये हमारा साधारण मोह है| इस साधारण मोह में एक सिरा मीठा होता है, और दूसरा उतना ही कड़वा| तो एक सिरे को ख़ारिज करने के लिए हम क्या करते हैं? उसके दूसरे सिरे को पकड़ लेते हैं| ये एक तरीका है, एक सिरे को छोड़ने का|
दूसरा तरीका क्या है? दोनों सिरों को ही फेंक दिया, क्योंकि दोनों एक साथ हैं, एक के साथ दूसरा जुड़ा हुआ है| एक को छोड़ना है, तो दोनों को छोड़ो| कड़वे को छोड़ना है, तो कड़वे और मीठे दोनों को छोड़ो, क्योंकि दोनों हमेशा एक साथ हैं| मूर्ख हैं वो जो एक सिरे को छोड़ कर दूसरे को पकड़ते हैं, क्योंकि दूसरा पहले के साथ ही है|
विपरीत की तलाश हमेशा तुम्हें फँसा कर रखेगी| जानते हो लोग दुखी क्यों हैं? इसलिए नहीं कि दुःख आवश्यक है, इसलिए क्योंकि उन्हें सुख की तलाश है| सुख की तलाश, दुःख को स्थाई बना देती है| जो सुख को पकड़ता है, वो दुःख को भी पकड़ लेता है| जिसे दुःख वास्तव में छोड़ना होता है, वो सुख और दुःख दोनों को फेंक देता है| अर्थ समझो यहाँ पर|
नानक को कड़वे को छोड़ना है, कह रहे हैं कि मीठा चाहिये| पर नानक ने कड़वे को ऐसे छोड़ा कि कड़वे और मीठे दोनों को ही फेंक दिया, इसी में तो बोध है| समझ में आ रही है बात?
एक को चाहोगे, तो दूसरा साथ में मिलेगा| इसीलिये, न मीठा, न कड़वा|
– ‘बोध-सत्र’ पर आधारित| स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं|
सत्र देखें: प्रेम – मीठे-कड़वे के परे
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लेख २ : जिसने माँगा नहीं उसे मिला है
लेख ३ : दुःख, सुख, और परमसुख
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सप्रेम,
प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन
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