कूलनेस का उदाहरण देता हूँ, जो सबसे सीधा उदाहरण है| कूलनेस का उदाहरण है प्रह्लाद, की उसको आग पर बैठा दिए तब भी नहीं जला, यह है कूल, की बाहर कितनी भी गर्मी है वो नहीं जल रहा| प्रहलाद की कहानी पता है ना? उसको क्या किया था ? होलिका उसको लेकर बैठ गई थी जलती हुई चिता पर, तब भी नहीं जल रहा है| या नचिकेता के सामने मौत खड़ी है तब भी वो कह रहा है, “नहीं साहब डर वर नहीं लग रहा है हम तो कुछ बातें पूछना चाहते हैं, हमें आप बताइए| मौत से भी घबरा नहीं रहा है वह, मौत से भी ज्ञान पाना चाहता है, न मौत से लड़ रहा है कि यमराज से लड़ने बैठ गया|वह तो यमराज से भी कह रहा है कि सिखाईये, बताइए – यह कूलनेस है|
कूलनेस इसमें नहीं है कि अंट-शंट बोल रहे हैं और फंकी बिहेवियर दिखा रहे हैं, फंकी होने से कुछ नहीं हो जाता| मार्कन्डेय रहो वो कूल है, मार्क नहीं कूल है, कूलनेस किसमें है? मार्कन्डेय में, मार्क में नही कूलनेस है| और मार्कन्डेय कितने कूल हैं ये जानना है तो उनके शब्द पढ़ो, उनकी कहानियाँ पढ़ो फिर पता चलेगा कूलनेस किस को बोलते हैं|
शांडिल्य कूल है, या सैंडल कूल है? अब तुम शांडिल्य को सैंडी बना देते हो और सैंडल बना देते हो| इसमें कहाँ कूलनेस है? इन छोटी बातों का ख्याल रखते हैं| छोटे का काम होता है झुकना और बड़े का काम होता है झुके तो उठाना, दोनों अपना-अपना धर्म निभाएँ, फिर मज़ा आता है|
यहाँ पेरेंट्स भी हैं तो इसीलिए कह रहा हूँ, “घरो में पूजा, प्रार्थना का, भजन-कीर्तन का महत्व होता है और ये किया करिये| ये पिछड़ेपन की निशानी नहीं है| जिस घर में पूजा न होती हो, जिस घर में कबीर के दोहे न गाये जाते हों फिर उस घर में गड़बड़ होना सुनिश्चित है और जिन बच्चों के कान में बचपन से राम कथा न पड़ रही हो, उपनिषद न पड़ रहे हों, भजन न पड़ रहे हों, वो बच्चे बहुत कमज़ोर निकलेंगे|
आजकल तो स्कूलों की टीचर बताती हैं ना घर में भी अंग्रेजी में बोलिए| अब जब घर में भी अंग्रेजी मे बात करनी है तो वहाँ फिर कबीर कहाँ से आएँगे पर ये भी समझ लीजिए, अगर बच्चे की ज़िन्दगी में बचपन से ही कबीर नहीं हैं तो वो बच्चा आतंरिक रूप से बहुत मरियल निकलेगा, कोई दम नही होगा उसमे, ज़िन्दगी के आघात नहीं सह पाएगा| आप लोग बाहर-बाहर का पोषण तो दे देते हो, कहते हो कि डाईट अच्छी रखेंगे, उसके लिए स्पोर्ट्स का इंतज़ाम कर देंगे और ये सब कर देंगे पर असली जो सेहत होती है वो भीतरी होती है, मन का स्वास्थ और मन का स्वास्थ तो संतों से ही बनता है| वो स्कूल में लाए नहीं जाते| बच्चों के पास और घरों में भी ये कह कर नहीं लाए जाते कि साहब, ये सब तो पुरानी बातें हैं, हम इन पर नहीं चलते| फिर घर में कलह रहती है| बच्चे बड़े ही नहीं होने पाते|
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really we all think that “hum to cool hai ……just by doing/looking like so called….. cool dude” but in where is our inner coolness … coolness in mind …. man ki coolness that will only come by praying…. very nice
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