परमात्मा भिखारी नहीं पैदा करता। और तुम परमात्मा से ही मांग रहे हो और सिद्ध कर रहे हो कि परमात्मा ने तुमको भिखारी ही पैदा किये हैं।
परमात्मा भिखारी पैदा करता नहीं। तुम पूरी धरती को देख लो, कौन तुम्हें यहाँ मांगता हुआ नज़र आता है। ये पेड़ कभी कुछ मांगता नहीं, ये हवाएँ कुछ मांगती नहीं, ये घास कुछ मांगती नहीं, नदी कुछ मांगती नहीं, छोटे से छोटे जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े कुछ मांगते नहीं। उन्हें जो चहिये वो उपलब्ध है।
आदमी अकेला है जो मांगता है। जैसे कि परमात्मा ने सब कुछ बना दिया और फिर भिखारी बनाना शेष रह गया था तो उसने इंसान बना दिया। पूरी पृथ्वी पर सबकुछ बनाने के बाद परमात्मा को याद आया कि सब कुछ तो बना दिया भिखारी बनाया नहीं, तो फिर उसने इंसान रचा।
मांगने से पहले पांच बार अपने आप से सख्ती से पूछा करो, “चाहिये भी है क्या? नहीं मिलेगा तो क्या बिगड़ जाएगा?” जितना तुम पाते जाओगे कि कुछ नहीं बिगड़ता तुम्हारा न पाने से, उतना ज्यादा तुम स्वयं में, आत्मा में स्थापित होते जाओगे।
हम ऐसे जीते हैं जैसे ज्यों हम में कोई मूलभूत कमी रह गयी है, जैसे हमारी आत्मा में कोई अपूर्णता है, और फिर हम मांगते हैं जैसे हम आत्मा में कोई तुरपन लगा रहे हों, सिल रहे हों, जैसे आत्मा में कोई कमी हो, जैसे आत्मा में कोई मलीनता हो जिसे हम साफ़ कर रहे हों। जैसे आत्मा में कोई छेद हो जिसे हम भर रहे हो। मांगना अपने आप में वास्तव में बुरा नहीं है, पर मांगने के पीछे हमारी जो वृति बैठी है, वो बड़ी गड़बड़ है।
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